Jageshwar Dham : उत्तराखंड का वो ऐतहासिक मंदिर जहां सबसे पहले हुई थी लिंग के रूप में महादेव की पूजा
देवों की भूमि उत्तराखंड जहां कदम कदम पर देवी देवता विराजते है । उत्तराखंड धार्मिक स्थलों का संग्रह है।हर मंदिर का धार्मिक औऱ एतिहासिक महत्व है ।इतना ही नहीं यहां के मंदिरो में कोई ना कोई रहस्य जुड़े हुए है । इन्हीं रहस्यों और इतिहास को जानने के लिए लोग खींचे चले आते हैं. ऐसे ही मंदिरों में से एक है उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में स्थित जागेश्वर धाम मंदिर ।
कहते है आलौकिक शक्ति और आस्था का प्रतीक उत्तराखंड का जागेश्वर धाम वो जगह हैं, जहां सबसे पहले लिंग के रूप में महादेव की पूजा की परंपरा शुरू हुई थी. जागेश्वर को भगवान शिव की तपोस्थली भी माना जाता है. इस मंदिर का 2500 वर्ष पूर्व इतिहास है. सनातन धर्म के लिंग पुराण, स्कंद पुराण औऱ शिव पुराण में इस मंदिर का उल्लेख मिलता है. इस मंदिर के अंदर कई शिलालेख औऱ मूर्तियां मौजूद हैं. इस मंदिर में शंकर भगवान के नागेश स्वरुप की पूजा की जाती है. इस मंदिर के आस- पास ऊंचे -ऊंचे देवदार के पेड़ों का जंगल है.
हर तरफ से देवदार के जंगल से घिरा यह 100 मंदिरों का एक समूह है जो अल्मोड़ा के बहुत करीब है। मंदिरों को देखने के लिए यह आश्चर्यजनक स्थान हैं और इसलिए ये पूरा परिवश देखने योग्य है। जागेश्वर में शिलालेख, नक्काशी और मूर्तियां एक खजाना हैं यदि आप वास्तुकला, धर्म या इतिहास में हैं। उत्तराखंड का ये प्राचीन मंदिर वास्तव में अपनी खूबियों की वजह से आपको स्तब्ध कर देगा। इस स्थान को जागेश्वर घाटी मंदिर के रूप में भी जाना जाता है, वे 7 वीं और 12 वीं शताब्दी के बीच हैं। यहाँ के कुछ मंदिर 1400 साल पुराने हैं। इस क्षेत्र में कई नए मंदिरों का भी विकास हुआ है, जो कुल 200 की संख्या के करीब हैं। मंदिर 1870 मीटर की ऊंचाई पर स्थित हैं, और जाटगंगा नदी की घाटी में स्थित हैं। यहां के अधिकांश मंदिर वास्तुकला की नगा शैली का अनुसरण करते हैं, जबकि कुछ दक्षिण और मध्य भारत में उपयोग किए जाने वाले पैटर्न का भी पालन करते हैं।
रहस्यों से भरा है मंदिर
जागेश्वर धाम को अद्भुत शक्तियों और शिव साधना की वजह से रहस्यमयी जगह माना जाता है. यहां जिस तरह से मंदिर और बाहर की मूर्तियां नीचे से एक होती हैं, लेकिन ऊपर की ओर दो हो जाती है. उसी तरह पेड़ भी रहस्यों से भरे हैं. यहां पेड़ का तना तो एक होता है, लेकिन ऊपर दो हो जाती है. यानी पेड़ जड़ से एक और ऊपर दो पेड़ों में विभाजित हो जाती है. इतना ही नहीं कई पेड़ यहां गणेश के रूप में नजर आते हैं. मंदिर परिसर में ही कमल कुंड है. जहां कमल के फूल तैरते हैं. जो आपके भाग्य को भी बताते हैं.
इन देवताओं की होती है पूजा
जागेश्वर धाम में मुख्य तौर पर भगवान शिव, विष्णु, देवी शक्ति और सूर्य देवता की पूजा की जाती है. होती है.रोचक बात ये है कि जागेश्वर धाम के अंदर के मंदिरों के भी अलग-अलग नाम हैं. जैसे- दंडेश्वर मंदिर, चंडी-का-मंदिर, जागेश्वर मंदिर, कुबेर मंदिर, मृत्युंजय मंदिर, नंदा देवी या नौ दुर्गा, नवग्रह मंदिर और सूर्य मंदिर यहां के प्रमुख मंदिर हैं. पुष्टि माता और भैरव देवता की भी यहां पूजा की जाती है.
कैसे पहुंचे
यदि आप मानसिक शांति औऱ भक्ति साथ तलाश रहे हैं तो जागेश्वर धाम जरूर जाएं. यहां जाने के लिए बस, ट्रेन आदि सुविधाएं उपलब्ध हैं. दिल्ली से जागेश्वर की दूरी 390 किमी की है. आप काठगोदाम तक ट्रेन या बस से सफर कर सकते हैं. इसके बाद जागेश्वर लगभग 120 किमी बस या टैक्सी से यात्रा करनी होगी. यहां रहने के लिए कई होमस्टे बन चुके हैं. औऱ खाने के लिए आपको यहां बढ़िया पहाड़ी खाना मिल जाएगा.