आस्था, अध्यात्म और विस्मयकारी क्षणों को अपने में समेटे भगवान यक्ष के नर पश्र्वा के दहकते अंगारों पर नृत्य करने के साथ ही जाख मेला सम्पन्न हुआ. इस बार भगवान जाख (यक्ष) ने तीन बार अग्निकुंड में प्रवेश किया. नृत्य के कुछ देर बार हल्की बूंदाबांदी होने से भक्तों के चेहरे पर खुशी देखने को मिली.
वर्षों से इस मंदिर में विशाल अग्निकुंड के धधकते अंगारों पर नर पश्र्वा नृत्य करके श्रद्धालुओं को आशीर्वाद देते हैं. यह संभवत इतिहास का पहले ऐसा मेला है, जहां पर विशाल अग्निकुंड के अंगारों पर मानव द्वारा ढोल दमाऊ, भोंपू और जाख देवता के जयकारों के बीच देव नृत्य करता है. रोंगटे खड़े करने वाले इस दृश्य को देखकर वैज्ञानिक भी हतप्रभ हैं.
बरसों से चली आ रही परंपराओं का निर्वहन करते हुए नर देवता को उनके मूल गांव से देवशाल स्थित विंध्यवासिनी मंदिर तक पहुंचाया जाता है. जहां पर विंध्यवासिनी मंदिर की परिक्रमाएं पूर्ण कर जाख की कंडी और जलते दीये के पीछे जाख मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं. मंदिर पहुंचने के बाद कुछ देर बांज के पेड़ के नीचे ढोल सागर की थाप पर देवता अवतरित होते हैं. देव स्वरूप में आने के बाद मंदिर में पहुंचकर देव को तांबे की गागर में भरे हुए पुण्य जल से स्नान करवाते हैं. इसके बाद पूरे वेग से नर देव देखते ही देखते दहकते अंगारों पर तीन बार नृत्य करने के बाद लोगों को आशीर्वाद देते हैं.